वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
28 जुलाई 2019
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ३, श्लोक ५)
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
भावार्थः
कोई भी मनुष्य किसी भी समय में
क्षण-मात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य
प्रकृति से उत्पन्न गुणों द्वारा विवश होकर कर्म करता ही है ।।
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हम सब क्या सिर्फ़ प्रकृति के गुलाम हैं?
आध्यात्मिक होना माने क्या?
मुक्ति क्या है?
संगीत: मिलिंद दाते